भारत एक कृषि प्रधान देश है। यहाँ की ज़्यादातर आबादी खेती से जुड़ी हुई है। गाँवों की अर्थव्यवस्था और आम लोगों की रोज़मर्रा की ज़िंदगी खेती पर निर्भर करती है। लेकिन समय बदल रहा है। आज सिर्फ खेती करना ही काफी नहीं है, बल्कि खेती को एक व्यवसाय (Business) के रूप में देखना भी ज़रूरी हो गया है। यही फर्क एक किसान और कृषि-उद्यमी में दिखाई देता है।
कई बार लोग “किसान” और “कृषि-उद्यमी” को एक ही समझ लेते हैं। जबकि दोनों में सोच, काम करने का तरीका और लक्ष्य अलग-अलग होते हैं। किसान का ध्यान ज़्यादातर फसल उगाने और पशुपालन तक सीमित रहता है, जबकि कृषि-उद्यमी खेती को एक बिज़नेस की तरह आगे बढ़ाता है। इस लेख में हम विस्तार से जानेंगे कि किसान और कृषि-उद्यमी में क्या अंतर है और क्यों दोनों का साथ मिलकर काम करना भविष्य के लिए ज़रूरी है।
किसान कौन होता है
किसान वह व्यक्ति है जो खेती करता है, बीज बोता है, फसल काटता है और उसे लोगों तक पहुँचाता है। पारंपरिक तौर पर किसान ज़मीन, फसल और पशुपालन पर निर्भर रहता है। उसका मकसद अच्छा अनाज उगाना और अपने परिवार तथा समाज की खाद्य ज़रूरतों को पूरा करना होता है।
किसान समाज की रीढ़ होता है। वह मेहनत करके अनाज पैदा करता है ताकि हर किसी की थाली में रोटी पहुँच सके। लेकिन उसकी सोच अक्सर उत्पादन तक सीमित रहती है। मुनाफे या मार्केटिंग के बारे में ज़्यादा नहीं सोचता।
किसान की मुख्य विशेषताएँ
- पारंपरिक तरीकों पर निर्भरता: ज्यादातर किसान आज भी वही पुराने बीज, सिंचाई और खेती के तरीके अपनाते हैं, जो उनके पूर्वजों ने सिखाए थे।
- उत्पादन पर फोकस: किसान का सबसे बड़ा लक्ष्य ज़मीन से अच्छी फसल लेना और अपने परिवार का पेट भरना होता है।
- कम जोखिम लेने की प्रवृत्ति: किसान सामान्यतः ज़्यादा बड़ा जोखिम नहीं उठाता। उसकी सोच यही होती है कि जितना उत्पादन हो जाए, उसी से गुज़ारा किया जाए।
- समुदाय और ज़मीन से जुड़ाव: किसान अपने खेत और गाँव से गहरा जुड़ाव रखता है। उसके लिए ज़मीन सिर्फ संपत्ति नहीं बल्कि उसकी पहचान होती है।
कृषि-उद्यमी कौन होता है
कृषि-उद्यमी वह होता है जो खेती को एक व्यवसाय (Entrepreneurship) के रूप में देखता है। वह सिर्फ फसल उगाने तक सीमित नहीं रहता, बल्कि यह सोचता है कि इस फसल से और क्या-क्या बनाया जा सकता है जिससे अधिक मुनाफा कमाया जा सके।
कृषि-उद्यमी आधुनिक तकनीक, वैज्ञानिक तरीकों और मार्केटिंग का इस्तेमाल करता है। उसका मकसद केवल उत्पादन नहीं बल्कि उत्पाद को सही बाज़ार तक पहुँचाना और उससे ज़्यादा लाभ कमाना होता है।
कृषि-उद्यमी की मुख्य विशेषताएँ
- जोखिम उठाने की क्षमता: कृषि-उद्यमी नए प्रयोग करने और नवाचार अपनाने के लिए तैयार रहता है।
- बाज़ार विश्लेषण: वह यह समझता है कि किस उत्पाद की माँग बाज़ार में ज़्यादा है और उसी हिसाब से रणनीति बनाता है।
- मूल्यवर्धित उत्पाद: किसान केवल दूध बेच सकता है, लेकिन कृषि-उद्यमी वही दूध प्रोसेस करके पनीर, घी, मक्खन बनाकर अधिक पैसे कमा सकता है।
- आर्थिक विकास पर ध्यान: कृषि-उद्यमी न सिर्फ अपनी आय बढ़ाता है, बल्कि गाँव में नए रोजगार भी पैदा करता है।
किसान और कृषि-उद्यमी के बीच मुख्य अंतर
अगर हम दोनों की तुलना करें, तो फर्क साफ नज़र आता है।
पहलू | किसान | कृषि-उद्यमी |
---|---|---|
फोकस | उत्पादन पर | उत्पादन + व्यवसाय पर |
दृष्टिकोण | पारंपरिक | आधुनिक और नवाचारपूर्ण |
लक्ष्य | खाद्य सुरक्षा और परिवार का गुज़ारा | मुनाफा, विकास और नए अवसर |
मानसिकता | उत्पादन केंद्रित | व्यवसाय केंद्रित |
इससे साफ है कि किसान और कृषि-उद्यमी दोनों का काम अलग-अलग है, लेकिन दोनों ही कृषि क्षेत्र के लिए ज़रूरी हैं।
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