किसान भाइयों नमस्कार, फसल उगाना आसान काम नहीं है। पौधों को ठीक से बढ़ने के लिए पानी, धूप और मिट्टी के अलावा कई पोषक तत्वों की जरूरत होती है। ये तत्व मिट्टी से मिलते हैं, लेकिन कभी-कभी मिट्टी में इनकी कमी हो जाती है। ऐसी स्थिति में पौधे बीमार जैसे दिखने लगते हैं। सबसे पहले लक्षण पत्तियों पर नजर आते हैं। अगर आप इन लक्षणों को समय पर पहचान लें, तो फसल को बचा सकते हैं। इस लेख में हम कुछ मुख्य पोषक तत्वों की कमी के बारे में बात करेंगे, जैसे लोहा, कैल्शियम, नाइट्रोजन, मैग्नीशियम, पोटेशियम, मैंगनीज, फॉस्फोरस और कार्बन डाइऑक्साइड। ये लक्षण सामान्य हैं, लेकिन अलग-अलग फसलों में थोड़ा फर्क हो सकता है। हम सरल भाषा में समझाएंगे, ताकि आप खेत में जाकर आसानी से चेक कर सकें। याद रखें, कमी होने पर उर्वरक डालकर या मिट्टी सुधारकर समस्या हल की जा सकती है।
पौधों में पोषक तत्वों की कमी के आसान लक्षण
आइए, हर कमी के लक्षणों को अलग-अलग और आसानी से समझते हैं।
लोहे (आयरन) की कमी
लोहे की कमी सबसे ज्यादा नई पत्तियों पर दिखती है। नई बढ़ती हुई पत्तियां पीली या सफेद हो जाती हैं, जबकि पुरानी पत्तियां हरी-भरी ही रहती हैं। यह इसलिए होता है क्योंकि लोहा क्लोरोफिल बनाने में मदद करता है, जो पत्तियों को हरा रखता है। अगर मिट्टी ज्यादा क्षारीय (अल्कलाइन) हो, तो पौधा लोहा नहीं सोख पाता। उदाहरण के तौर पर, टमाटर या नींबू के पौधों में यह समस्या आम है। अगर आप देखें कि पौधे की टिप वाली पत्तियां सफेद हो रही हैं, तो समझ लें कि लोहे की कमी है। इसे ठीक करने के लिए लोहा युक्त स्प्रे या उर्वरक का इस्तेमाल करें। समय पर ध्यान न दें, तो पौधा कमजोर हो जाएगा और फसल कम आएगी।

कैल्शियम की कमी
कैल्शियम पौधों की कोशिकाओं को मजबूत बनाता है। इसकी कमी से पौधे की बढ़त रुक जाती है और पत्तियां टेढ़ी-मेढ़ी या विकृत हो जाती हैं। नई पत्तियां मुड़ी हुई या सड़ी हुई लगती हैं। फलों वाली फसलों जैसे टमाटर में फल के नीचे काला धब्बा पड़ जाता है। यह कमी अम्लीय मिट्टी या ज्यादा पानी से होती है। किसान भाई, अगर आपकी फसल में नई टहनियां कमजोर लग रही हों, तो कैल्शियम की जांच करें। चूने या जिप्सम डालकर इसे सुधारा जा सकता है। यह कमी जल्दी फैलती है, इसलिए शुरुआत में ही ध्यान दें।

नाइट्रोजन की कमी
नाइट्रोजन पौधों की बढ़त के लिए सबसे जरूरी है। इसकी कमी से पुरानी पत्तियां पीली पड़ जाती हैं और मुरझा जाती हैं। नई पत्तियां हल्के हरे रंग की हो जाती हैं। पूरा पौधा कमजोर लगता है और पत्तियां गिरने लगती हैं। यह कमी रेतीली मिट्टी में ज्यादा होती है, जहां नाइट्रोजन आसानी से बह जाता है। खेत में अगर नीचे वाली पत्तियां पीली हो रही हों, तो यूरिया या जैविक खाद डालें। फसल जैसे मक्का या सब्जियां इसमें ज्यादा प्रभावित होती हैं। समय पर नाइट्रोजन दें, तो फसल हरी-भरी रहेगी।

मैग्नीशियम की कमी
मैग्नीशियम क्लोरोफिल का हिस्सा है। कमी होने पर पत्तियों की शिराएं गहरी हरी रहती हैं, लेकिन बीच का हिस्सा हल्का या पीला हो जाता है। यह पुरानी पत्तियों से शुरू होता है। अम्लीय या रेतीली मिट्टी में यह समस्या आती है। अगर पत्तियां जैसे जालीदार लग रही हों, तो मैग्नीशियम सल्फेट का स्प्रे करें। टमाटर, आलू जैसी फसलों में यह आम है। इसे इग्नोर न करें, वरना पौधा फोटोसिंथेसिस ठीक से नहीं कर पाएगा।

पोटेशियम की कमी
पोटेशियम पौधों को मजबूत बनाता है। कमी से पत्तियों के किनारे और टिप पीले पड़ जाते हैं, और बाद में भूरे होकर सूख जाते हैं। यह पुरानी पत्तियों पर पहले दिखता है। ज्यादा पानी या रेतीली मिट्टी में पोटेशियम कम हो जाता है। अगर आपकी फसल में किनारे जल रहे जैसे लगें, तो पोटाश युक्त उर्वरक डालें। यह कमी फलों की गुणवत्ता कम करती है।

मैंगनीज की कमी
मैंगनीज की कमी से पत्तियों पर धब्बे पड़ जाते हैं और छेद हो जाते हैं। शिराएं हरी रहती हैं, लेकिन बीच पीला हो जाता है। क्षारीय मिट्टी में यह होता है। अगर छोटे-छोटे धब्बे दिखें, तो मैंगनीज सल्फेट का इस्तेमाल करें। सोयाबीन या फलदार पौधों में आम समस्या।

फॉस्फोरस की कमी
फॉस्फोरस जड़ों और फूलों के लिए जरूरी है। कमी से पत्तियां गहरे रंग की हो जाती हैं और झड़ने लगती हैं। पौधा छोटा रह जाता है। ठंडी या गीली मिट्टी में यह कमी आती है। अगर पत्तियां बैंगनी-नीली लगें, तो सुपर फॉस्फेट डालें।

किसान भाइयों, ये लक्षण देखकर मिट्टी का टेस्ट करवाएं। संतुलित उर्वरक जैसे एनपीके इस्तेमाल करें। जैविक खेती से भी मिट्टी स्वस्थ रहती है। समय पर ध्यान दें, तो फसल अच्छी होगी।
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