तोरई की पांच उन्नत किस्मों:- किसान साथियों नमस्कार, मार्च का महीना आते ही खेतों में एक नई शुरुआत का समय शुरू हो जाता है। इस दौरान सरसों की फसल की कटाई पूरी हो चुकी होती है, और धान की बुवाई में अभी तीन से चार महीने का समय बाकी रहता है। ऐसे में किसानों के पास खाली पड़े खेतों का उपयोग करने का सुनहरा अवसर होता है। इस समय तोरई की खेती एक बेहतरीन विकल्प साबित हो सकती है। तोरई की फसल न केवल कम समय में तैयार हो जाती है, बल्कि यह अच्छा मुनाफा भी दिलाती है। यह फसल 50 से 60 दिनों में तैयार होकर किसानों को उत्पादन देने लगती है। गर्मियों के मौसम में तोरई की मांग बाजार में बहुत अधिक रहती है, जिसके चलते किसानों को इसके अच्छे दाम भी मिलते हैं। इस लेख में हम तोरई की पांच ऐसी उन्नत किस्मों के बारे में जानेंगे, जो कम समय में शानदार उत्पादन देती हैं और किसानों के लिए लाभकारी हैं।
तोरई की खेती के लिए मिट्टी की गुणवत्ता का विशेष ध्यान रखना जरूरी है। इसके लिए उपजाऊ मिट्टी, जिसमें कार्बनिक पदार्थों की मात्रा अधिक हो और जल निकासी की अच्छी व्यवस्था हो, सबसे उपयुक्त मानी जाती है। साथ ही, मिट्टी का पीएच मान 6.5 से 7.5 के बीच होना चाहिए। तापमान की बात करें तो 25 से 37 डिग्री सेल्सियस इसके लिए आदर्श होता है। अब आइए, तोरई की उन पांच किस्मों के बारे में विस्तार से जानते हैं, जो किसानों के लिए वरदान साबित हो सकती हैं।
तोरई की पांच उन्नत किस्मों
पूसा सुप्रिया: यह तोरई की एक उन्नत किस्म है, जिसे भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (आईएआरआई) ने विकसित किया है। इस किस्म की खासियत यह है कि यह मात्र 50 दिनों में तुड़ाई के लिए तैयार हो जाती है। इसके फल मध्यम आकार के, चिकने और हरे रंग के होते हैं। यह किस्म न केवल अच्छी उपज देती है, बल्कि रोगों के प्रति भी प्रतिरोधी है। पूसा सुप्रिया से किसान प्रति हेक्टेयर 130 से 140 क्विंटल तक उत्पादन प्राप्त कर सकते हैं। गर्मियों में इसकी मांग अधिक होने के कारण बाजार में अच्छी कीमत मिलना तय है।
पंत चिकनी तोरई 1: गोविंद बल्लभ पंत कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, पंतनगर द्वारा विकसित यह किस्म भी किसानों के बीच लोकप्रिय है। इसके फल हरे, बेलनाकार और लंबे होते हैं। यह 50 से 55 दिनों में पहली तुड़ाई के लिए तैयार हो जाती है। इसकी सबसे बड़ी खासियत है इसका उच्च उत्पादन, जो प्रति हेक्टेयर 140 से 170 क्विंटल तक हो सकता है। यह किस्म न केवल जल्दी तैयार होती है, बल्कि गुणवत्ता के मामले में भी बेहतरीन है, जिससे बाजार में इसकी अच्छी मांग रहती है।
पूसा चिकनी: यह भी भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (आईएआरआई) की एक शानदार किस्म है। इसके फल चिकने, हरे, बेलनाकार और मध्यम आकार के होते हैं। यह किस्म 60 से 70 दिनों में तुड़ाई के लिए तैयार हो जाती है। पूसा चिकनी से किसान प्रति हेक्टेयर 150 से 200 क्विंटल तक उत्पादन ले सकते हैं। इसकी खेती करना आसान है और यह गर्मियों के मौसम में अच्छा प्रदर्शन करती है। बाजार में इसकी कीमत भी अन्य किस्मों की तुलना में बेहतर रहती है।
काशी दिव्या: भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्थान, वाराणसी द्वारा विकसित यह किस्म भी बेहद खास है। इसके फल मध्यम आकार के, गुदेदार और पतले होते हैं। यह 60 दिनों में पहली तुड़ाई के लिए तैयार हो जाती है और प्रति हेक्टेयर 130 से 160 क्विंटल तक उत्पादन देती है। यह किस्म डाउनी मिल्ड्यू जैसे रोगों के प्रति प्रतिरोधी है, जो इसे किसानों के लिए और भी आकर्षक बनाती है।
कल्याणपुर हरी चिकनी: चंद्रशेखर आजाद कृषि विश्वविद्यालय, कानपुर द्वारा विकसित यह किस्म अपनी अधिक उपज और गुणवत्ता के लिए जानी जाती है। इसके फल मध्यम आकार के, गुदेदार और पतले होते हैं। यह 70 दिनों में तुड़ाई के लिए तैयार हो जाती है और प्रति हेक्टेयर 200 से 220 क्विंटल तक उत्पादन दे सकती है। यह किस्म उन किसानों के लिए बेहतरीन है जो अधिक उत्पादन के साथ मुनाफा कमाना चाहते हैं।
इस तरह, मार्च के महीने में सरसों के खेत खाली होने पर तोरई की इन किस्मों की खेती करके किसान न केवल अपने खेतों का बेहतर उपयोग कर सकते हैं, बल्कि कम समय में अच्छी कमाई भी कर सकते हैं। यह फसल न सिर्फ आर्थिक रूप से लाभकारी है, बल्कि खेती के चक्र को भी संतुलित रखने में मदद करती है। आपको मेरे द्वारा दी गयी जानकारी कैसी लगी। कृपा कमेंट के मद्धम से हमें जरूर बताएं और इसे आगे अन्य किसानों तक अवश्य शेयर करें। धन्यवाद!
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