मक्का की फसल:- नमस्कार किसान साथियों, भारतीय कृषि में फसल चक्र का विज्ञान हमेशा से ही किसानों की आय और प्राकृतिक संसाधनों के बीच संतुलन बनाने में अहम भूमिका निभाता आया है। उत्तर प्रदेश, पंजाब और मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में आलू की फसल के तुरंत बाद मक्का की खेती एक बड़े पैमाने पर की जाती है। लेकिन यह फसल अपने अधिक पानी की मांग के लिए जानी जाती है, जो किसानों के लिए चुनौतीपूर्ण हो सकता है। ऐसे में, उद्यान विभाग की “ड्रॉप मोर क्रॉप” योजना और आधुनिक सिंचाई तकनीकें किसानों के लिए वरदान साबित हो रही हैं। यह न केवल 40-50% पानी की बचत करती है, बल्कि फसल की गुणवत्ता और किसानों के मुनाफ़े को भी दोगुना कर देती है।
मक्का की फसल
मक्का की फसल (जायद मक्का) को पूरी तरह से पकने तक लगभग 500 से 600 मिलीमीटर पानी की आवश्यकता होती है। हालांकि, यह मात्रा मिट्टी के प्रकार, मौसम की अनिश्चितताओं और सिंचाई की दक्षता जैसे कारकों पर निर्भर करती है। पारंपरिक फ्लड इरिगेशन (बाढ़ सिंचाई) के दौरान पानी का अत्यधिक उपयोग न केवल संसाधनों की बर्बादी है, बल्कि यह मिट्टी में वायु संचार को भी बाधित करता है। जिला उद्यान अधिकारी श्री सीपी अवस्थी के अनुसार, “किसान अक्सर फसल को आवश्यकता से अधिक पानी दे देते हैं, जैसे किसी को एक गिलास पानी चाहिए हो और वह एक बाल्टी पी ले। इससे जड़ों तक ऑक्सीजन नहीं पहुंच पाती, जिससे उर्वरक क्षमता और उत्पादन दोनों प्रभावित होते हैं।”
ड्रिप और स्प्रिंकलर पानी बचाने की तकनीक
उद्यान विभाग की “ड्रॉप मोर क्रॉप” योजना के तहत किसानों को ड्रिप इरिगेशन और मिनी स्प्रिंकलर सिस्टम जैसी आधुनिक तकनीकें सब्सिडी पर उपलब्ध कराई जाती हैं। इनके उपयोग से पानी की खपत में 30-60% तक की कमी आती है:
- मिनी स्प्रिंकलर: यह विधि फसल को फव्वारों के माध्यम से समान रूप से पानी देती है, जिससे पानी का वाष्पीकरण कम होता है और मिट्टी की नमी लंबे समय तक बनी रहती है।
- ड्रिप सिस्टम: इससे पानी सीधे पौधों की जड़ों तक पहुंचता है, जिससे खरपतवार को नियंत्रित करने और उर्वरक की बचत में भी मदद मिलती है।
यह तकनीक कैसे फायदेमंद
- पानी की बचत: परंपरागत तरीकों की तुलना में 50% तक कम उपयोग।
- उत्पादन में वृद्धि: फसल को सही मात्रा में पानी मिलने से दानों की संख्या और आकार में सुधार होता है।
- गुणवत्ता: समुचित सिंचाई से मक्का की नमी और पोषक तत्वों का संतुलन बेहतर होता है, जिससे बाजार में उच्च मूल्य मिलता है।
- लागत में कमी: डीजल और बिजली के खर्च में कटौती।
मान लीजिए एक किसान परंपरागत तरीके से प्रति एकड़ 20,000 लीटर पानी खर्च करता है। ड्रिप सिस्टम अपनाकर वह इसे 10,000 लीटर तक सीमित कर सकता है। इससे न केवल सिंचाई लागत आधी हो जाती है, बल्कि बचाया गया पानी दूसरी फसलों या पशुपालन में उपयोग किया जा सकता है। साथ ही, गुणवत्ता वाली फसल बाजार में 10-15% अधिक दाम पर बिकती है।
योजना का लाभ उठाने के लिए क्या करें
किसान उद्यान विभाग के कार्यालय में संपर्क करके आवेदन कर सकते हैं। सरकार इसके तहत 50-80% तक की सब्सिडी प्रदान करती है। ट्रेनिंग सेशन और डेमो फार्म्स पर इन तकनीकों का प्रायोगिक ज्ञान भी दिया जाता है।
जल संकट के इस दौर में, ड्रिप और स्प्रिंकलर जैसी तकनीकें न केवल संसाधनों का संरक्षण करती हैं, बल्कि किसानों को आर्थिक रूप से सशक्त भी बनाती हैं। जैसा कि श्री अवस्थी कहते हैं, “सही मात्रा में पानी देना ही समझदारी है। यह योजना किसानों को गरीबी के चक्र से बाहर निकालकर समृद्धि की ओर ले जाएगी।”
इसलिए, यदि आप मक्का की खेती करते हैं, तो उद्यान विभाग की इस योजना का लाभ उठाएं और प्राकृतिक संसाधनों का सम्मान करते हुए अपनी आय को दोगुना करें! धन्यवाद!
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