किसान साथियों नमस्कार, लाल सड़न रोग गन्ने की फसल के लिए एक गंभीर समस्या है, जो फंगस से उत्पन्न होती है और पूरी फसल को तबाह कर सकती है। यह लेख गन्ने की खेती में इस रोग से बचने के तरीकों के बारे है, खास तौर पर CO-0238 जैसी उच्च उत्पादन देने वाली किस्में इस बीमारी की चपेट में आ रही हैं।
गन्ने का लाल सड़न रोग
लाल सड़न रोग गन्ने की सबसे खतरनाक बीमारियों में से एक है, जो Colletotrichum falcatum (Glomerella tucumanensis) नामक फंगस के कारण होती है। यह रोग गन्ने के तने में लाल और सफेद धब्बों के रूप में दिखाई पड़ता है। प्रभावित पौधों की पत्तियां पीली पड़ने लगती हैं और सूख जाती हैं। यह बीमारी न केवल फसल की पैदावार को कम करती है, बल्कि चीनी की गुणवत्ता को भी कम करती है, जिससे किसानों को भारी आर्थिक नुकसान उठाना पड़ता है। शोध के अनुसार, यह रोग दुनिया के 69 देशों में फैला हुआ है और भारत में खास तौर पर उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे राज्यों में इसका प्रभाव गंभीर है।
उत्तर प्रदेश में CO-0238 किस्म, जो लंबे समय से अपनी उच्च उपज और चीनी प्रतिशत के लिए प्रसिद्ध रही, अब CF 13 स्ट्रेन के कारण बुरी तरह प्रभावित हो रही है। यह किस्म राज्य के लगभग 82.2% क्षेत्र में उगाई जाती थी, लेकिन अब विशेषज्ञ इसे बदलने की सलाह दे रहे हैं। यदि समय रहते उचित कदम न उठाए गए, तो किसानों को बड़ा नुकसान झेलना पड़ सकता है।
रोग के फैलने के कारण
लाल सड़न रोग के फैलने में कई कारक हैं:
- लगातार एक ही किस्म की खेती: एक ही खेत में बार-बार एक ही किस्म उगाने से रोग का खतरा बढ़ जाता है।
- मिट्टी का pH स्तर: यदि मिट्टी का pH 5 से 6 के बीच हो, तो रोग पैदा करने वाले कवक तेजी से बढ़ते हैं।
- जल-जमाव: खेतों में पानी का ठहराव कवक के विकास को प्रोत्साहित करता है।
- सूखे की स्थिति: बुवाई के बाद लंबे समय तक सूखा रहने से भी संक्रमण तेजी से फैलता है।
- संक्रमित बीजों का उपयोग: रोगग्रस्त खेतों से लिए गए बीज रोग को आगे बढ़ाते हैं।
- संवेदनशील किस्में: ऐसी किस्में जो रोग के प्रति संवेदनशील होती हैं, संक्रमण को बढ़ावा देती हैं।
इन कारणों को समझकर किसान रोग को फैलने से रोकने में सक्षम हो सकते हैं।
बचाव के लिए प्रभावी उपाय
लाल सड़न रोग से बचाव के लिए किसानों को निम्नलिखित कदम उठाने चाहिए:
- रोग-प्रतिरोधी किस्मों का चयन: गन्ना विकास विभाग और वैज्ञानिकों ने रोग-प्रतिरोधी किस्मों को अपनाने की सलाह दी है। उत्तर प्रदेश में CO-0238 के स्थान पर CoS 19231, CoSe 17451, Co 15023, Co 0118, Co 0239 और Co 0124 जैसी किस्में उपयुक्त हैं। ये किस्में न केवल रोग के प्रति प्रतिरोधी हैं, बल्कि अच्छी उपज भी देती हैं।
- स्वस्थ और प्रमाणित बीज: बीज हमेशा प्रमाणित नर्सरी से लें और बुवाई से पहले उनकी जांच करें। यदि बीज के सिरों पर लाल रंग की लाली दिखाई दे, तो उन्हें प्रयोग में न लाएं।
- बीजों का उपचार: बीजों को 1 ग्राम कार्बेन्डाजिम या मैंकोजेब प्रति लीटर पानी में घोलकर उपचारित करें। अगर संभव हो, तो बीजों को 54 डिग्री सेल्सियस तापमान पर 1 घंटे तक गर्म आर्द्रीकरण मशीन में रखें। यह प्रक्रिया रोग के शुरुआती संक्रमण को रोकने में प्रभावी है।
- जैविक उपायों का प्रयोग: ट्राइकोडर्मा एक शक्तिशाली जैविक फफूंदीनाशक है, जो मिट्टी और पौधों पर हानिकारक फंगस को नियंत्रित करता है। इसका उपयोग करने का तरीका:
इसका उपयोग करने का तरीका:
- 2 किलोग्राम ट्राइकोडर्मा को गोबर की खाद या वर्मी कम्पोस्ट में मिलाएं।
- इसे खेत की अंतिम जुताई से 7 दिन पहले मिट्टी में अच्छी तरह मिला दें।
- इसके अतिरिक्त, कात्यायनी टायसन फंगीसाइड, जो ट्राइकोडर्मा विरिडी से बना होता है, का उपयोग करें। यह रोग को 50% तक कम करता है और मिट्टी में लाभकारी सूक्ष्मजीवों की संख्या बढ़ाता है।
खेत का उचित प्रबंधन:
खेत में जल-जमाव को रोकें, मिट्टी का pH संतुलित रखें और फसल चक्र का पालन करें। उदाहरण के लिए, गन्ने के बाद धान या अन्य फसलों की खेती करें, ताकि मिट्टी की उर्वरता बनी रहे और रोग का जोखिम कम हो।
रोग-प्रतिरोधी किस्मों की जानकारी
किस्म का नाम | क्षेत्र | लाभ |
---|---|---|
CoS 19231 | उत्तर प्रदेश | उच्च उपज, रोग के प्रति प्रतिरोधी |
CoSe 17451 | पूर्वी उत्तर प्रदेश | अधिक चीनी प्रतिशत, रोग-प्रतिरोधी |
Co 15023 | पूरे भारत | अच्छी पैदावार, रोग-प्रतिरोधी |
Co 0118 | उत्तर प्रदेश | लाल सड़न के प्रति मजबूत प्रतिरोध |
निष्कर्ष और सुझाव
लाल सड़न रोग गन्ने की खेती के लिए एक बड़ा खतरा है, लेकिन सही रणनीति और उपायों से इसके प्रभाव को कम किया जा सकता है। रोग-प्रतिरोधी किस्मों का चयन, स्वस्थ बीजों का उपयोग, बीजों का उचित उपचार और जैविक नियंत्रण जैसे-ट्राइकोडर्मा का प्रयोग किसानों को इस समस्या से निपटने में मदद कर सकता है। इसके साथ ही, स्थानीय कृषि विभागों और शोध संस्थानों की सलाह लेना भी जरूरी है ताकि नवीनतम जानकारी और तकनीकों का लाभ उठाया जा सके। इन उपायों को अपनाकर किसान न केवल अपनी फसल को बचा सकते हैं, बल्कि आर्थिक नुकसान से भी बच सकते हैं।
यह रोग एक चुनौती जरूर है, लेकिन जागरूकता और वैज्ञानिक दृष्टिकोण के साथ इसे नियंत्रित करना संभव है। समय पर कदम उठाना ही इस समस्या का सबसे प्रभावी समाधान है। धन्यवाद!
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