धान में लगने वाली मुख्य बीमारियां की पहचान और उनकी रोकथाम|Major diseases of paddy

By Kheti jankari

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धान में लगने वाली मुख्य बीमारियां की पहचान और उनकी रोकथाम

नमस्कार किसान भाइयो, रोग फसलों के लिए एक ऐसा श्राप है जो देखते ही देखते पूरी फसल को बर्बाद कर देता है। किसानों की मेहनत और फसल की लागत का एक बड़ा हिस्सा किन रोगों की रोकथाम के ऊपर खर्च हो जाता है। और बहुत ही कम किसानों को रोग और उनकी सही दवा का पता होता है यह हाल हर जगह के किसानों का है।

धान की बाली में दाने खाली या भूरे होने का कारण

धान में लगने वाली मुख्या बिमारियां

धान की फसल में कई रोग और बिमारियां आती हैं। इसका कारण बैक्टेरिया, फफूंदी, वायरस, कीट, या पोषक तत्वों की कमी हो सकता है।
धान में लगने वाले प्रमुख रोगों में फंगस जनित रोग जैसे झुलसा रोग, बलाइट रोग, ब्लास्ट रोग, यह पौधे के तने, पत्ते तथा बाली की गर्दन पर फैलाते हैं। भूरा चिता रोग, शीत ब्लास्ट और हल्दिया रोग फंगस जनित रोग होते हैं।
इसकी बाद बैक्टीरिया से बैक्टीरियल लीफ ब्लाइट रोग होता है।
वायरस से फैलने वाले रोगों में राइस स्ट्रिप वायरस, ग्रस्सी स्टंट वायरस और खैरा रोग आदि प्रमुख हैं।
कीट और पतंगे इन रोगों को फैलाने में मुख्य भूमिका निभाते हैं। और फसल की पत्तियों, तनों तथा बालियों को काटकर उन्हें नुकसान पहुंचाते हैं।

धान में लगने वाले फफूंदी जनक रोग

धान की फसल में लगने वाले फफूंदी जनक रोगों के लिए सही समय जब मौसम में अत्यधिक नमी हो, रात को ठंड और दिन में गर्मी हो, ओस गिर रही हो, खेत में पानी भरा रहा हो और लगातार बारिश हो रही हो तो फुफंदी जनक रोगों का प्रकोप अधिक रहता है। धान में लगने वाले फुफंदी जनक रोगों के बारे में पूरी जानकारी नीचे दी गई है।

ब्लास्ट रोग

  • यह रोग पौधे की में नर्सरी से शुरू होकर दाना बाहर आने तक कभी भी आ सकता है। यह हवा, पानी, और मिट्टी सभी से फैलता है। यह रोग बहुत तेजी से फैलता है। यह फसल को हर स्टेज में खत्म करने की क्षमता रखता है।
  • यह रोग पौधे में अलग-अलग स्थानों पर लगता है और अलग-अलग नामों से जाना जाता है
  • जब यह रोग पत्तियों में लगता है। तो इसे लीफ ब्लास्ट कहते हैं। इसमें पत्तियों में नाव के आकार के धब्बे हो जाते हैं। जो बीच में सफेद होते हैं। और किनारों से हल्के बुरे दिखाई देते हैं।
  • अगर यह रोग नालियां पर या गांठ पर लगता है तो इसे नोड ब्लास्ट कहते हैं
  • और अगर यह रोग बाली की गर्दन पर लगता है तो इसे नेक ब्लास्ट या कॉलर ब्लास्ट कहा जाता है।
  • यह धान का सबसे खतरनाक रोग है।
  • कई बार किसान भाई भूरा चिता रोग(ब्राउन स्पॉट) को ब्लास्ट समझने की गलती कर देते हैं।
  • भूरा चिता रोग में धब्बे गोल कार के होते हैं। और ब्लास्ट में धब्बे नाव के आकार के होते हैं। लेकिन यह देखने में एक जैसे ही लगते हैं। किसान भाइयों को बहुत ध्यान से देखने पर पता चलता है।
ब्लास्ट रोग की रोकथाम

ब्लास्ट रोग की रोकथाम के लिए आप नीचे दी गई दवाई में से किसी का भी इस्तेमाल कर सकते है।
1.ट्राइसाइक्लाज़ोल(Tricyclazole) 75%Wp की 160g मात्रा प्रति एकड़ प्रयोग करें।
2.आइसोप्रोथियोलेन(Isoprothiolane) 40%EC की 400m मात्रा प्रति एकड़ प्रयोग कर सकते हैं।
3.कसुगामाइसिन(Kasugamycin) 3%sl ki 400ml मात्रा प्रति एकड़ में प्रयोग करें।
इसमें कोई भी दवा का प्रयोग करने पर सिलिकॉन बेस्ड स्प्रेड (स्टिकर) अवश्य मिलाना चाहिए।

ब्लाइट(blight) या झुलसा रोग

  • यह रोग केवल धान में ही नहीं लगता बल्कि कपास, आलू, टमाटर, बैंगन और मिर्च में भी देखा जाता है।
  • अगर यह रोग फसल में जल्दी आ जाता है। तो अर्ली ब्लाइट कहा जाता है। और अगर यह फसल में देरी से आता है। तो इसे लेट ब्लाइट कहां जाता है।
  • इस रोग फैलने के 25* से 35* तापमान और 70% से अधिक नमी की जरूरत होती है।
  • यह रोग जठम्मानुस उराजी नमक जीवाणु से फैलता है।
  • यह रोग पौधे के हर हिस्से पर लग सकता है।
  • इसमें पत्तियां पर हरी-पिली धारियां बन जाती है, जो लम्बाई और चौड़ाई में बढ़ जाती है।
  • अधिक यूरिया डालने और देर से डालना रोग को बढ़वा देता है।
  • यह रोग ब्लास्ट रोग के मुकाबले धीरे से फैलता है।
ब्लाइट(blight) या झुलसा रोग की रोकथाम

ब्लाइट रोग की रोकथाम के लिए आप नीचे दी गई दवाइयों का इस्तेमाल कर सकते हैं।
1.कार्बेन्डाजिम(Carbendazim) 50%WP की 500g मात्रा प्रति एकड़ प्रयोग करें।
2.टेबुकोनाज़ोल(Tebuconazole) 25.9%Ec की 250ml मात्रा प्रति एकड़ प्रयोग करें।
3. कार्बेन्डाजिम(Carbendazim)12% + मेंकोजेब(Mencozeb) 63%WP की 500g मात्रा प्रति एकड़ प्रयोग करें।

भूरा चिता रोग(Brown spot) रोग

  • यह रोग पूरी फसल अवधि अवधि में कभी भी लग सकता है।
  • भूरा चिता रोग से आप की फसल में 10 से 50%तक का नुकसान हो सकता है।
  • इस रोग की पहचाना पत्तियों से कर सकते हैं इसमें पतियों पर गोल भूरे धब्बे पड़ जाते हैं।
  • यह रोग बीज, हवा, पानी और मिट्टी सबसे फैलता है। बंगाल में कुख्यात अकाल इसी रोग के कारण फैला था।
  • इसको किसान भाई इस रोग की पहचान आराम से कर सकते हैं।
  • अगर फसल में भूरा चिता रोग लग गया है। और उस खेत के बीजों को आप अगले साल इस्तेमाल करते हैं। तो अगले साल भी यह रोग आप की फसल में आ सकता है।
भूरा चिता रोग(Brown spot) की रोकथाम
  • इसकी रोग की रोकथाम के लिए बीज शोधन बहुत आवश्यक है।
  • बीज शोधन के लिए आप कार्बेन्डाजिम(Carbendazim) 50%WP, थ्रियम(thriam)75%, कैप्टन(captan)50% ka इस्तेमाल कर सकते है।
  • फसल में इस रोग के आने के बाद आप उसकी रोकथाम के लिए कार्बेन्डाजिम(Carbendazim) 50%WP की 500g मात्रा प्रति एकड़ या फिर मैंकोजेब(mancozeb) 75%wp की 1kg मात्रा प्रति एकड़ प्रयोग करें।

शीत ब्लाइट (sheath blight) रोग

  • ब्लास्ट के बाद दूसरा सबसे खतरनाक रोग धान यही होता है। यह हवा, पानी तथा मिट्टी के द्वारा फैलता है।
  • इसमें तने पर छोटे-बड़े और अलग-अलग आकार के धब्बे बन जाते हैं। ऐसा लगता है कि सांप की कंजुल का डिजाइन बना हो। डब्बे के बीच में हल्का सफेद रंग और किनारों पर बुरा रंग होता है।
  • यह रोग अगर आप की फसल में लगता है तो पूरे पौधे को खत्म कर देता है।
  • यह रोग खेत में पानी की ऊपरी सतह से शुरू होकर धीरे-धीरे सारे कल्लो में फैल जाता है।
  • इस रोग से आप की फसल को 100% तक नुकसान हो सकता है।
शीत ब्लाइट (sheath blight) की रोकथाम

शीत ब्लाइट की रोकथाम के लिए आप नीचे दी गई दवाइयों का इस्तेमाल कर सकते हैं।
1. थिफ्लुज़ामाइड 24% एससी (पल्सर )IIL की 300ML मात्रा प्रति एकड़ प्रयोग करें।
2. हेक्साकोनाजोल(hexaconazole) 5%EC की 250ML प्रति एकड़ प्रयोग करें।
3. अमिस्तर टॉप(amistar top) एज़ोक्सिस्ट्रोबिन(Azoxystrobin) 18.2%w/w + डाइफ़ेनोकोनाज़ोल(Difenoconazole) 11.4%SC की 200ml प्रति एकड़ प्रयोग करें।

हल्दिया रोग या कंडुआ रोग (False smut) रोग

  • यह रोग पौधे में दाने भरने के समय आता है।
  • इसकी पहचान खेत में चलने पर हो जाती है। अगर खेत में चलने पर पीले रंग कपड़ों पर लग जाता है। तो समझना के हल्दिया रोग आप की फसल में आ गया है।
  • पत्तियों पर पीले और फिर बाद में काले रंग की गांठे बन जाती हैं।
  • जब तापमान 25* से 30*c हो और हवा नमी 90% तब यह रोग अधिक मात्रा में फैलता है।
  • इससे फसल की क्वालिटी और पैदावार के वजन में असर पड़ता है।
  • रोग ग्रसित फसल बाजार में कम भाव में भी मुश्किल से बिकती है।
हल्दिया रोग या कंडुआ रोग (False smut) की रोकथाम

हल्दिया रोग की रोकथाम के लिए आप बाली निकलने से पहले कॉपर ऑक्सिक्लोराइड ( copper oxychaloride) 50%wp की 300g मात्रा प्रति एकड़ प्रयोग करें और बाली निकलने के बाद कुप्रोफिक्स (UPL) की 500g मात्रा प्रति एकड़ प्रयोग करें।

खैरा रोग

  • इस रोग में पत्ते हल्के पीले पड़ जाते हैं।
  • यह रोग ऊपर से शुरू होकर नीचे की तरफ बढ़ता है।यह रोग जिंक की कमी से फैलता है।
  • इस रोग के लक्षण दिखाई देने पर आपको अपनी फसल में जिंक 33% की 5kg मात्रा प्रति एकड़ प्रयोग करना चाहिए।

बैक्टीरिया से फैलने वाले रोग

धान की फसल में बैक्टीरिया से फैलने वाले रोगों में बैक्टीरियल लीफ ब्लाइट सबसे सामान्य रोग है। यह रोग बी एल बी (BLB) के नाम से जाना जाता है।

बैक्टीरियल लीफ ब्लाइट(BLB)

  • यह रोग सामान्य आपको रोपाई के 20 से 25 दिन बाद देखने को मिलता है।
  • इसमें पत्ती किनारों से पीली हो जाती हैं और धीरे-धीरे पूरा पौधा सूख जाता है।
  • पौधे को उंगली से दबाने पर गाढ़ा पीला पदार्थ निकलता है।
  • सक्रमित पतियों को काटकर कांच के गिलास में पानी में रखने पर पानी दूधिया रंग का हो जाता है।
बैक्टीरियल लीफ ब्लाइट(BLB) की रोकथाम

बैक्टीरियल लीफ ब्लाइट की रोकथाम के लिए आप निम्नलिखित दवाइयों का इस्तेमाल कर सकते हैं।
1.स्ट्रेप्टोसाइक्लिन(streptocycline) की 18g मात्रा प्रति acre प्रयोग करें।
2.कॉपर ऑक्सिक्लोराइड ( copper oxychaloride) 50%wp की 300g मात्रा प्रति एकड़ प्रयोग करें।
(नोट–कॉपर वाले फंगीसाइड का इस्तेमाल बाली निकलने से पहले करना चाहिए।)

धान में वायरस से फलने वाले रोग

ग्रासी स्टंट वायरस( grassy stunt virus) रोग

  • इस रोग में पौधे में ज्यादा कल्ले निकलते हैं। और पौधे में बौनापन और पीलेपन की समस्या देखने को मिलती है।
  • यह रोग मिट्टी, हवा, पानी, कीट और फफूंद सभी से फैलता है।
  • यह रोग मुख्यत कीटों के कारण फैलता है।
ग्रासी स्टंट वायरस( grassy stunt virus) की रोकथाम

इस रोग की रोकथाम के लिए आप को सिस्टमैटिक कीटनाशकों का प्रयोग करना चाहिए। इस रोग में प्रयोग होने वाली दवाइयां निम्नलिखित हैं।
1.थियामेथोक्सम(Thiamethoxam) 25% Wg की 100g मात्रा प्रति एकड़ प्रयोग करें।
2.दिनोटेफ्यूरान(Dinotefuran)20% SG की 100g मात्रा प्रति एकड़ प्रयोग करें।
3.पायमेट्रोज़िन(Pymetrozine)50% WG की 120g मात्रा प्रति एकड़ प्रयोग करें।

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FAQ

1. धान में जिंक की कमी से कोनसा रोग होता है।
ans. धान में जिंक की कमी से खैरा रोग होता है।
2. झुलसा रोग के लक्षण क्या है।
ans. इसकी पहचान के लिए इसे पत्ते के किनारों पर हल्के बैंगनी रंग के धब्बे होते हैं बाद में यह मॅट मेले रंग के हो जाते है।

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Kheti jankari

मैं एक किसान हूँ, और खेती में एक्सपर्ट लोगो से मेरा संपर्क है। मैं उनके द्वारा दी गयी जानकारी और अनुभव को आपके साथ साँझा करता हूँ। मेरा प्रयास किसानों तक सही जानकारी देना है। ताकि खेती पर हो रहे खर्च को कम किया जा सके।

8 thoughts on “धान में लगने वाली मुख्य बीमारियां की पहचान और उनकी रोकथाम|Major diseases of paddy”

  1. किसानों के लिए बहुत सारी जानकारी दी गई है धान में लगने वाले रोग और उसके उपचार के बारे में। ज्यादातर किसानों को पता नहीं चल पाता है।
    बहुत सहायक है।

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