गेहूं में भूरा रतुआ रोग फैलने के मुख्य कारण:- किसान साथियों नमस्कार, गेहूं भारत में उगाई जाने वाली एक मुख्य फसल है। इसकी खेती सर्दियों में की जाती है। लेकिन जब इसका पकाने का समय होता है। उस समय गर्मी अधिक होती है। सर्दी और गर्मी के बीच का जो मौसम होता है। उसमें कीट और फंगस रोग काफी अधिक मात्रा में लगते हैं। जिस कारण से गेहूं में काफी ज्यादा फंगस रोग और कीट रोग देखने को मिलते हैं। गेहूं में एक ऐसा ही रोग जिसे भूरा रतुआ रोग कहा जाता है। यह कुछ इलाकों में बहुत तेजी से फैलता है. और गेहूं की फसल को काफी नुकसान पहुंचता है। गेहूं की फसल में यह रोग 10% से 30% तक का नुकसान कर सकता है। गेहूं में भूरा रतुआ की पहचान, रोकथाम और यह क्यों इतनी तेजी से फैलता है। इस बारे में कृषि वैज्ञानिक क्या कहते है, इस बारे में जानकारी के लिए कृपा पूरा लेख पढ़ें।
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गेहूं में भूरा रतुआ रोग फैलने के मुख्य कारण
भूरा रतुआ रोग मुख्य रूप से फरवरी महीने में फैलता है। क्योंकि इस समय दिन में धूप के कारण तापमान गर्म रहता है, और रात में ठंड होने के कारण यह रोग बहुत तेजी से फैलता है। इन दोनों हवा भी बहुत तेज चलती है। यह रोग आसानी से कंट्रोल नहीं होता। भूरा रतुआ रोग मुख्य रूप से पहाड़ी क्षेत्रों में से शुरू होकर मैदानी क्षेत्र तक जाता है। पहाड़ी क्षेत्र में इसके स्पोर लंबे समय तक पनपते रहते हैं, और अनुकूल मौसम होने पर यह हवा के माध्यम से मैदानी क्षेत्र में चले जाते हैं।
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गेहूं में भूरा रतुआ रोग की पहचान
सामान्य तौर पर भूरा रतुआ रोग के लक्षण पत्तियों पर दिखाई देते हैं। लेकिन कभी-कभी इसके रोग के लक्षण आपको बाली पर भी देखने को मिलते हैं। पत्तियों पर छोटे और गोलाकार गुलाबी रंग के धब्बे बन जाते हैं। जो धीरे-धीरे काले हो जाते हैं, और धीरे-धीरे पूरी पत्ती को नष्ट कर देते हैं। अत्यधिक संक्रमण होने से बाली के सभी दाने का रंग काला हो जाता है। अगर आप पत्तियां को हाथ से रगड़ते हो, तो आपके हाथ में भूरे रंग का पाउडर लगता है।
गेहूं में भूरा रतुआ रोग की रोकथाम
अगर आप भूरा रतुआ रोग को आने से पहले किसी भी फफूंदी नाशक से कंट्रोल कर सकते हैं। लेकिन जब भूरा रतुआ रोग आपकी फसल में आ जाता है, तो इसके लिए आपको कुछ अच्छे फफूंदी नाशकों का प्रयोग करना पड़ता है। भूरा रतुआ रोग आने पर आपको कुछ मुख्या फफूंदी नाशकों के नाम बताए गए हैं। जिनका प्रयोग आप कर सकते हैं।
- रिजल्ट (नागार्जुन) प्रोपिकोनाज़ोल 25% ई.सी 250ml प्रति एकड़ साथ में एम-45 250g प्रति एकड़।
- नेटिवों (बायर) टेबुकोनाज़ोल 50%+ ट्राइफ्लोक्सीस्ट्रोबिन 25% डब्ल्यूजी 120g प्रति एकड़।
- अमिस्टार टॉप (सिंजेंटा) एज़ोक्सीस्ट्रोबिन 18.2% + डिफ़ेनोकोनाज़ोल 11.4% एससी की 200ml प्रति एकड़।
- एम्पेक्ट एक्स्ट्रा (सिंजेंटा) एज़ोक्सीस्ट्रोबिन 18.2% + साइपेरोकोनाज़ोल 7.3% की 150ml मात्रा प्रति एकड़
- ओपेरा (बीएएसएफ) पाइराक्लोस्ट्रोबिन 13.3% + एपॉक्सीकोनाज़ोल 5% एसई की 250ml मात्रा प्रति एकड़.
ऊपर बताए गए आप किसी भी टेक्निकल का उपयोग कर सकते हैं। इन फफूंदीनाशकों के साथ आप किसी कीटनाशक का प्रयोग अवश्य करें। यह सभी आपकी भूरा रतुआ रोग को आसानी से कंट्रोल कर लेंगे। अगर आपको मेरे द्वारा दिए की जानकारी अच्छी लगी। तो कृपा कमेंट के माध्यम से जरूर बताएं और इसे आगे अन्य किसानों तक अवश्य शेयर करें। धन्यवाद!
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